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यस आई एम— 35





















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बहुत देर तक उन लोगों को उलझा हुआ देख लड़की अपनी चुपी तोड़ते हुए बोली। "अगर आप लोग बुरा ना मानो तो मैं आपको एक सलाह देती हूं आप लोगों को पुलिस को कॉल करके बुला ही लेना चाहिए क्योंकि बाद में आप लोगो को ही परेशानी उठानी पड़ सकती है और वैसे भी ये लड़का खुद यहां पर आया था ना की आप लोगों ने बुलाया था।" इतना कहकर वह चुप हो गई।





"पर अगर पुलिस को बुलाने पर उल्टा हम लोग ही फंस गए , फिर क्या होगा?" वहां पर मौजूद एक कर्मचारी सवाल पूछते हुए बोला।



"ऐसा कुछ भी नही होगा। वैसे ही सीसीटीवी फुटेज में पता चल ही जाएगा कि यह यहां पर अपनी मर्जी से आया था ना कि आप लोगों ने इसे यहां पर बुलाया था। लड़के को ही अपनी जान प्यारी नही होंगी तभी तो वह इतने बड़े बड़े अक्षरों में गेट के बाहर वार्निंग लिखे होने के बाद भी अंदर चला गया। इस से बेवकूफ इंसान तो कोई हो ही नही सकता। ये लड़का ही शायद यहां पर सुसाइड करने के लिए आया होगा।" लड़की उस कर्मचारी को समझाते हुए बोली।



वहां पर मौजूद सभी लोग लड़की की बात से सहमत होकर पुलिस को बुला लेते है। कुछ ही देर बाद पुलिस वहां पर आ जाती है और उस एरिया को सील कर देरी है। पुलिस वहां पर आने के बाद तहकीकात करने लग जाती है जिसमें उन्हें सीसीटीवी फुटेज से साफ साफ पता चल जाता है कि वह वहां पर अपनी मर्जी से आया था।  पर जब उन लोगों ने उस लड़के की हरकतों को ध्यान से देखा तो पाया कि वह लड़की का पीछा करते हुए वहां पर आया था। जिसके बाद पुलिस लड़की से पूछते है कि क्या वह उस लड़के को जानती है जिसके जवाब में लड़की ना में गर्दन हिला देती है।





इसके बाद पुलिस लड़के की लाश की छानबीन करने लगते जिसमे उन्हे उस लड़के का नाम पता चलता है और साथ ही साथ उन लोगों को उस लड़के की जेब से उसका फोन मिलता है जिसे वे लोग फोन का पासवर्ड अनलॉक करने के लिए भेज देते है क्योंकि उसी से उन लोगों को आगे कुछ पता चल पाता। इसके अलावा लाश को फोरेंसिक एक्सपर्ट के पास भेज दिया जाता है और बाकि के लोगों को उस लड़के के बारे में पता करने  बोलते है। सब जरूरी फॉर्मेल्टीज पूरी करने के बाद पुलिस वहां से चली जाती है। पुलिस के वहां से जाने के बाद लड़की अपने रेस्टोरेंट में बर्फ लेकर वापस लौट आती है।







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तृष्णा अपने बेड पर बैचेन होकर करवटे बदलते हुए। कुछ सोच रही थी। तभी वह तृष्णा अपनी करवटें बदलने वाली हरकत को रोककर बैठ जाती है और अपना लैपटॉप लेकर बैठ जाती है। बहुत देर तक लैपटॉप में माथापच्ची करने के बाद वह बड़बड़ाते हुए बोली। "ओह गॉड! एक तो किसी नॉवेल में बीच में ब्रेक लगने के बाद उसे नए सिरे से लिखना कितना मुश्किल होता है। बड़ी मुश्किल से तो मैं लड़की के मां बाप और बाकि के लोगों को मारकर नॉवेल के लिए बडी मुश्किल से अच्छी शुरुवात ढूंढ पाई थी। पर मेरी तो किस्मत ही खराब है।"



तृष्णा अपना सिर पीटते हुए बोली और फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली। "किस्मत क्यों खराब है? अच्छा भला नॉवेल चल रहा था और किस्मत को देखो नॉवेल में आगे कुछ लिख पाती उसी से पहले ही मेरे सैमेस्टर एग्जाम बीच में आ गए। अब इसमें एग्जाम की भी कोई गलती है , वे तो अपने ही टाइम पर आए है पर अगर आप कोई काम कर रहे हो और किसी रीजन की वजह से वह काम बीच में रूक जाए तो दिमाग खराब हो जाता है। पहले तो एग्जाम की वजह से नॉवेल लिखने वाले काम में ब्रेक लग गया और फिर फेस्टिवल आने की वजह से मै कुछ भी नही लिख पाई। लगभग 1 महीने से ज्यादा का गैप हो गया है।" इतना कहते ही तृष्णा ने एक लंबी आह भरी।





"अब जब मैं इसे नए सिरे से लिखने लगी हूं तो मुझे इसे लिखने में बहुत परेशानी आ रही है। एक तो नई शुरुवात देने के चक्कर में मै पहले ही अटकी पढ़ी थी और फिर इतना लंबा गैप लग गया अब तो नॉवेल लिखना भी महाभारत से कम नहीं....नही नही महाभारत करने से भी ज्यादा भारी लग रहा है। पहले तो मैंने फ्लो फ्लो में ही स्टडी के साथ ही 20 k वर्ड्स लिख दिए थे और अब 20 वर्ड्स लिखते हुए भी जान जा रही है। अब तो लिखते हुए ऐसा लग रहा है जैसे मेरा दिमाग सुन हो गया है और हाथ जाम हो गए है। ऐसा फील हो रहा है जैसे मै पहली बार लिख रही हूं। इतनी प्रॉब्लम तो पहली बार लिखते हुए भी नही हुई जितनी आज हो रही है। लगता है मुझे एक दो दिन फ्लो बनाने के लिए कुछ दिन लगातार लिखना पड़ेगा।



कुछ दिन लगातार लिखूंगी तो फ्लो बन जाएगा पर तब तक फ्लो नहीं बनेगा तब तक दिमाग खपाना ही पड़ेगा, तभी नॉवेल अच्छे से लिखा जाएगा। लोग कितनी आसानी से बोल देते है कि राइटर अपनी कहानी को टाइम पर क्यों नही देता, उन्हे ये मालूम नहीं है कि हम राइटर्स की भी अपनी पर्सनल लाइफ होती है जिसमें हम लोगों को बहुत सारे काम करते है। पर लोगों को लगता है हम लोगों को सिर्फ लिखने का ही काम होता है। नही , हम लोग लिखने से टाइम निकाल कर काम नहीं करते बल्कि काम आ टाइम निकाल कर लिखते है। अभी कहानी में सिर खपाने के बाद मेरे अंदर इतनी भी हिम्मत नही बची की मैं आगे कुछ सोच सकूं या फिर बोल सकूं तो बेहतर यही होगा कि मै जाकर खाना खा लूं। क्या पता खाना खाने से ही दिमाग फ्रेश हो जाए और मैं आराम से लिख सकूं।



इतने कहते ही तृष्णा अपने बेड से उठाकर किचन में खाना बनाने के लिए चली गई और खाना बनाने के बाद खाने के लिए बैठ गई। खाना खाते टाइम उसके दिमाग में ना जाने क्या आया जो वह खाना खाने के तुरन्त बाद घर से बाहर चली गई।





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To be continued..................................................।


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2 Comments

Writer ke pas time ki sortage hoti hmesha

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🤫

31-Dec-2021 11:09 AM

इंट्रेस्टिंग...

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